Holi 2023: आखिर क्यों मनाया जाता है होली का त्योहार? जानिए क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथाएं और मान्यता

Holi 2023: होली के त्योहार में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे आखिर क्या कहानी है.

Holi 2023

हमारे WhatsApp Group मे जुड़े👉 Join Now

हमारे Telegram Group मे जुड़े👉 Join Now

Holi 2023: होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है. यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएं मिलती है. इस कथाओं पर आधारित साहित्य और फ़िल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है.Holi 2023 आइए श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य ) गुरूदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा से जानते होली से जुड़ी सभी जरूरी धार्मिक मान्यताएं.

प्रह्लाद और होलिका की कथा

Holi 2023 होली का त्यौहार की सबसे प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुडा हुआ है. विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से.  Holi 2023 इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया.

ये भी पढ़े :-  Satish Kaushik Death: पार्टी में शामिल हुआ था दाऊद इब्राहिम का बेटा, विकास मालू की पत्नी का बड़ा दावा

वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था. हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएं दीं लेकिन वह हर बार बच निकला. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी.

अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए. परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया. होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ. इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं. Holi 2023

राधा और कृष्ण की कथा

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कथा से भी जुडा हुआ है. वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है. मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है. (Holi 2023)  बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है.

यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का. होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की.

शिव पार्वती और कामदेव की कथा

शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे. कामदेव पार्वती की सहायता को आए. उन्होंने पुष्प बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी. शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी. Holi 2023

ये भी पढ़े :-  SBI Yono Discount Offer: सिर्फ तीन दिन है ऑफर, SBI के Yono अकाउंट पर मिल रहा बंपर ऑफर, मिलेगा घूमने और शॉपिंग का मौका

उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया. फिर शिवजी ने पार्वती को देखा. पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है.

एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की.

ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया. यह दिन होली का दिन होता है. आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो. साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है.

कंस और पूतना की कथा

कंस ने मथुरा के राजा वसुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन कर लिया स्वयं शासक बनकर आत्याचार करने लगा. एक भविष्यवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवाँ पुत्र उसके विनाश का कारण होगा. यह जानकर कंस व्याकुल हो उठा और उसने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया.Holi 2023

कारागार में जन्म लेने वाले देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मौत के घाट उतार दिया. आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ और उनके प्रताप से कारागार के द्वार खुल गए. वसुदेव रातों रात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए.Holi 2023

कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है. कंस यह सुनकर डर गया और उसने उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने की योजना बनाई. इसके लिए उसने अपने आधीन काम करने वाली पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया.

ये भी पढ़े :-  KL Rahul Athiya Shetty Wedding: शादी की तैयारियां हुई शुरू, 23 जनवरी को लेंगे सात फेरे

वह सुंदर रूप बना सकती थी और महिलाओं में आसानी से घुलमिल जाती थी. उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था. अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया. यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी.

राक्षसी ढुंढी की कथा

राजा पृथु के समय के समय में ढुंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी. वह अबोध बालकों को खा जाती थी. अनेक प्रकार के जप-तप से उसने बहुत से देवताओं को प्रसन्न कर के उसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा. Holi 2023

इस वरदान के बाद उसका अत्याचार बढ़ गया क्यों कि उसको मारना असंभव था. लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी. राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा. पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी सब बच्चे एक एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें.

उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें. ऊंचे स्वर में तालियां बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें. ज़ोर ज़ोर से हँसें, गाएँ, चिल्लाएँ और शोर करें. Holi 2023 तो राक्षसी मर जाएगी. पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढुंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के समीप आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया. कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं.

(डिस्क्लेमर: ऊपर दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.)

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *