मुस्लिमों का सबसे अमीर समुदाय है दाऊदी बोहरा:महिला खतना और बराअत से विवादों में रहा; अभी फिर क्यों चर्चा में आया?
PM नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को मुंबई में दाऊदी बोहरा समुदाय के सैफ एकेडमी के एक कैंपस का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुझे बार-बार प्रधानमंत्री मत कहिए। मैं आपके परिवार का सदस्य हूं। PM मोदी ने कहा कि वो 4 पीढ़ियों से बोहरा समुदाय से जुड़े हैं।
इससे पहले 2018 में मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर इंदौर में बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। 2005 की एक तस्वीर मौजूद है, जिसमें नरेंद्र मोदी चेन्नई में बोहरा समुदाय के सैयदना के जन्मदिन के मौके पर उनसे मिलने पहुंचे हैं।

कौन है दाऊदी बोहरा समुदाय और PM मोदी की इस समुदाय से नजदीकियों के क्या मायने हैं?
दाऊदी बोहरा समुदाय की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक ये समुदाय पैगंबर हजरत मोहम्मद के वंशज हैं। दाऊदी बोहराओं के 21वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम थे। उनके बाद 1132 ईस्वी से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई, जो दाई-अल-मुतलक सैयदना कहलाते हैं। बोहरा समुदाय 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से भारत पहुंचा था। 1539 के बाद इस समुदाय का भारत में तेजी से विस्तार हुआ। यही वजह है कि बोहरा समुदाय ने अपने मुख्यालय को यमन से भारत के गुजरात स्थित सिद्धपुर में शिफ्ट कर दिया।
1588 में इस समुदाय के 30वें सैयदना की मौत के बाद उनके वंशज दाऊद बिन कुतुब शाह और सुलेमान शाह के बीच इस पद के लिए विवाद हो गया था। इसके बाद ही बोहरा दो हिस्से में बंट गए- दाऊदी बोहरा और सुलेमानी बोहरा। सुलेमानी बोहरा का दफ्तर यमन में है, जबकि दाऊदी का मुख्यालय मुंबई है।
भारत में दाऊदी बोहरा की आबादी 5 लाख और सुलेमानी बोहरा की आबादी 3 लाख है। वहीं पूरी दुनिया में दाऊदी बोहरा करीब 10 लाख और सुलेमानी बोहरा करीब 5 लाख हैं। भारत के अलावा इस समुदाय के लोग करीब 40 देशों में रहते हैं। इनकी ज्यादातर आबादी भारत, पाकिस्तान, यमन और पूर्वी अफ्रीका में है। ये लोग फातिमी इस्माइली तैय्यबी स्कूल ऑफ थॉट को मानते हैं।
बोहराओं में आध्यात्मिक गुरु ही सर्वोच्च ताकत
सैयदना के पद पर बैठे शख्स को समुदाय के लोग सुपर अथॉरिटी यानी सर्वोच्च सत्ता मानते हैं। इस वक्त दाऊदी बोहरा के लीडर डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन हैं। उन्होंने अपने पिता और 52वें लीडर डॉ सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन के निधन के बाद ये पद जनवरी 2014 में संभाला था। दाऊदी बोहरा समुदाय पढ़े-लिखे, संपन्न और बिजनेस करने वाले माने जाते हैं।
सैयदना देश और विदेश में अपने दूत नियुक्त करते हैं। इसे आमिल कहते हैं। आमिल ही धर्मगुरु के फरमान को लोगों तक पहुंचाते हैं। बोहरा धर्मगुरु सैयदना की बनाई हुई व्यवस्था के मुताबिक बोहरा समुदाय में हर सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक और व्यवसायिक कार्य के लिए सैयदना की रजा (अनुमति) अनिवार्य होती है। ये अनुमति हासिल करने के लिए समुदाय के लोगों को तय किया गया शुल्क चुकाना होता है।
शादी-ब्याह, बच्चे का नामकरण, विदेश यात्रा, हज, नए कारोबार, अंतिम संस्कार आदि सभी कुछ सैयदना की अनुमति से ही संभव होता है। सैयदना के दीदार करने और उनका हाथ अपने सिर पर रखवाने और उनके हाथ पर बोसा लेने के लिए भी कम्युनिटी के लोग लालायित रहते हैं। समुदाय के लोग अपनी वार्षिक आमदनी का एक निश्चित हिस्सा दान में देते हैं।
दाऊदी बोहरा समुदाय से जुड़े 3 चर्चित मामले…
1. दाऊदी बोहरा समुदाय के सैयदना पद के लिए दावा
बोहरा समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु के पद पर सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन बैठे हैं। हालांकि उनके ही परिवार के लोग उस पर अपना दावा करते हैं और ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में चल रहा है। दरअसल, समुदाय के 52वें सैयदना थे मोहम्मद बुरहानुद्दीन। 2012 में अचानक बीमार होने की वजह से उनकी मौत हो गई।
इसके बाद उनके बेटे सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन 53वें धर्मगुरु बन गए, जिसका उनके चाचा खुजेमा कुतुबुद्दीन ने विरोध किया। चाचा का दावा था कि जीवित रहते हुए मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने उन्हें अपना माजूम नियुक्त किया था। इसके बाद से ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में चल रहा है।
2. बोहरा समुदाय में महिला खतना की प्रथा का मामला
2018 में दाऊदी बोहरा समुदाय में महिला खतना प्रथा के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। धर्म के नाम पर लंबे समय से चली आ रही इस परंपरा को अमानवीय बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट में दायर जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वो इस तरह की परंपरा के पक्ष में नहीं है। ये मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।
3. बराअत की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ करेगी
बोहरा समुदाय बराअत की वजह से भी चर्चा में रहा है। सैयदना के फैसले का उल्लंघन करने वालों को बराअत यानी सामाजिक बहिष्कार का फरमान सुनाया जाता है। अगर किसी शख्स के खिलाफ बराअत का आदेश सैयदना जारी करते हैं तो इसके बाद उस शख्स को मस्जिद में एंट्री नहीं दी जाती है। मरने के बाद उसे कब्रिस्तान में भी दफनाने की इजाजत भी नहीं मिलती है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संवैधानिक पीठ सुनवाई करेगी।
2018 में बोहरा समुदाय की मस्जिद में पहुंचे थे नरेंद्र मोदी
महाराष्ट्र BJP प्रवक्ता माधव भंडारी के मुताबिक दाऊदी का BJP और नरेंद्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। 2012 में जब बोहरा की एक विश्वस्तरीय बैठक हुई थी तो उसमें भाजपा के कई नेता शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि अचार संहिता लागू होने की वजह से नरेंद्र मोदी उस साल वहां नहीं पहुंचे थे। हालांकि, 14 सितंबर 2018 को इंदौर स्थित बोहरा समुदाय की एक मस्जिद में मोदी पहुंचे थे। उनका कहना है कि नगर निगम चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इसकी वजह यह है कि 8 महीने पहले ही ये कार्यक्रम तय हुआ था।